मनुष्य उस द्वौतता में जीता है जो यथार्थ और केवल एक प्रकटन है: जो है और जो उसे दिखता है; जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय है, और जो अस्थायी और परिवर्तनीय है। नी लोग उस शाश्व्त अपरिवर्तनीय ’जो है’, उसे यथार्थ के रूप में समझते हैं और अनुभव करते हैं, जब कि मनुष्य अस्थायि परिवर्तनिय ’जो उसे दिखता है, ’उसीको जानता है और यथार्थ होने का मानता है। यथार्थता का कोई प्रमाणा नहीं और हो भी नहीं सकता क्यों कि वह मन से परे है, हालांकि मनुष्य उसके लिए सदा प्रयास करता है; जो ब्रामिक है उसका प्रमाणा का कोई अभाव नहीं क्यों कि वह मन के भीतर है और जिसे मनुष्य यथार्थ होने का मानता है। अत: मनुष्य, अस्थायि और परिवर्तन के क्षेत्र में खुद का सार न समझते हुए अनिश्चितता में जीता है। ’अद्वैत’ का अर्थ है ’दो नहीं’- ’जो विभक्त नहीं होता’: हर पुरष और स्त्री का जीवन ही ऎसा है।

’अद्वैत पब्लिकेशनस्‌’ अपने वेबसौट द्वारा एक बढ़ती हुई श्रृंखला की किताबें, निबन्ध, सी.डी., डी.वी.डि., व्याख्यात्मक चित्रण प्रदान करते हैं, जिसका एक उद्देश्य है - एक नी द्वारा, जीवन का समझ का वितरण, जो क्रियाएँ, बोली, विचार, समय और खुद मन की भ्रामिक स्व्भाव को समझ चुके हैं।

जो इस वेबसैट में उपलब्द है, उसे कृपया ध्यान से देखिए।